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या त॑ ऊ॒तिर॑मित्रहन्म॒क्षूज॑वस्त॒मास॑ति। तया॑ नो हिनुही॒ रथ॑म् ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yā ta ūtir amitrahan makṣūjavastamāsati | tayā no hinuhī ratham ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या। ते॒। ऊ॒तिः। अ॒मि॒त्र॒ऽह॒न्। म॒क्षुज॑वःऽतमा। अस॑ति। तया॑। नः॒। हि॒नु॒हि॒। रथ॑म् ॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:45» मन्त्र:14 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अमित्रहन्) शत्रुओं के मारनेवाले ! (या) जो (ते) आपकी (मक्षूजवस्तमा) शीघ्र अतिशय वेग से युक्त (ऊतिः) रक्षा आदि क्रिया (असति) होवे (तया) उससे (नः) हम लोगों की (रथम्) विमान आदि वाहन को प्राप्त कराके (हिनुही) वृद्धि कीजिये ॥१४॥
भावार्थभाषाः - जो राजा वेग आदि गुणों से युक्त रक्षा से प्रजाओं को प्रसन्न करके उन्नति करे, वही निरन्तर वृद्धि को प्राप्त होवे ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे अमित्रहन् ! या ते मक्षूजवस्तमोतिरसति तया नो रथं प्रापय्य हिनुही ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (या) (ते) तव (ऊतिः) रक्षाद्या क्रिया (अमित्रहन्) अरिहन् (मक्षूजवस्तमा) सद्योऽतिशयेन वेगयुक्ता (असति) भवेत् (तया) (नः) (हिनुही) वर्धय। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (रथम्) विमानादियानम् ॥१४॥
भावार्थभाषाः - यो राजा वेगादिगुणयुक्तया रक्षया प्रजाः प्रसाद्योन्नयेत् स एव सततं वर्धेत ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा ताबडतोब प्रजेचे रक्षण करून त्यांना प्रसन्न करतो व उन्नती करतो तोच निरंतर वृद्धी करतो. ॥ १४ ॥